Vyapar Me Sthaniy Bhasha Ka Yogdan – व्यापार में स्थानीय भाषा का योगदान 

 व्यापार में स्थानीय भाषा का योगदान 

किसी भी व्यापार में वृद्धि वस्तुओं और सेवाओं की बिक्री से होती है। व्यापार में वस्तुओं अथवा सेवाओं की बिक्री करना एक कला है। जिन संस्थानों ने इस कला के विकास के लिए अपने कर्मचारियों के ऊपर निवेश किया है, वे व्यापार में अपने क्षेत्र के शीर्ष स्थानधारक हैं। किसी भी व्यापार में वस्तुओं एवं सेवाओं की बिक्री केवल गुणवत्ता के कारण ही संभव नहीं होती है, अपितु इसमें गुणवत्ता के साथ-साथ बेचने की कला का होना आवश्यक है। बेचने की कला विकसित करने में व्यवहार, संवाद, संवाद में भाषा का प्रयोग और शारीरिक हाव-भाव अहम भूमिका निभाता है। इन सभी विषयों में से आज हम बात करेंगे, “व्यापार वृद्धि के लिए संवाद में राजभाषा अथवा स्थानीय भाषा के प्रयोग का योगदान” क्या है।

हम सभी जानते हैं कि भाषा अपने अंतर्मन के विचारों को साझा करने का एक साधन है। विचारों को साझा करने में जिस भाषा का प्रयोग हो रहा है उसकी जानकारी दोनों पक्षों को होनी चाहिए। तभी एक हृदय की अभिव्यक्ति दूसरे हृदय तक यथास्वरूप पहुंचेगी। यदि किसी एक पक्ष को उस भाषा का ज्ञान नहीं है तो संवादहीनता उत्पन्न होती है जो गलतफहमी को जन्म देती है और एक संबंध जो स्थापित हो सकता था वह बनते बनते रह जाता है। इसलिए कहा जाता है, “भाषा वही सही जो सबको समझ में आए।” राजभाषा हिंदी बहुल इलाके में यदि कामकाज में अंग्रेजी भाषा का प्रयोग हो तो यह किसी भी रूप में सार्थक सिद्ध नहीं होगा। इसी प्रकार यदि किसी क्षेत्र में कोई स्थानीय भाषा वहां के लोगों द्वारा बोली जाती है तो उस भाषा में संवाद करना व्यापार के लिए सार्थक होता है। यह कार्य उसे उसके मातृत्व का बोध कराता है जिससे संवाद में विनम्रता आती है और एक क्रोधी प्रवृत्ति का व्यक्ति भी शांत स्वभाव में बात करने के लिए राजी होता है। 

संवाद में राजभाषा या स्थानीय भाषा का प्रयोग वहाँ के ग्राहकों को अपनत्व का एहसास दिलाता है, ग्राहक आपसे जुड़ना व आपसे बात करना पसंद करते हैं। वार्तालाप करने में ग्राहक सहज होते हैं। यहीं से ग्राहकों के साथ एक अच्छा संबंध बनने की संभावना उत्पन्न होती है। हमारे द्वारा दी जा रही जानकारियों को सुनने में रुचि दिखाते हैं क्योंकि बात उनकी जुबान में हो रही होती है। ग्राहकों के मन में अपनत्व का एहसास व्यापार करने के कई रास्ते खोल देता है। उन्हें आभास होता है कि बात अपने लोगों के साथ हो रही है। 

संवाद की ऐसी अवस्था जहां ग्राहक वस्तुओं एवं सेवाओं के प्रयोग के लिए समभाषी कर्मचारी के साथ बात कर रहा हो तो ग्राहक वित्तीय जानकारियां साझा करने में सुरक्षित महसूस करते हैं। उन्हें सच्ची जानकारी साझा करने में कोई हिचकिचाहट महसूस नहीं होती है। आप यह बखूबी जानते हैं कि वित्तीय सुझाव के लिए, आपके पास सही जानकारी होना कितना मायने रखता है। ग्राहक को उम्मीद होती है कि अमुक व्यक्ति मेरी समस्याओं को अच्छे से समझकर सही सलाह देगा। ग्राहकों से प्राप्त सटीक जानकारी  के एवज में हम ग्राहक को उनकी आवश्यकता के अनुसार बेहतर सेवा देकर उनके नज़र में अपने संस्थान की विश्वसनीयता बढ़ा सकते हैं। यह ग्राहक के साथ एक लंबा संबंध स्थापित करने का प्रथम चरण बन जाता है।  एक ग्राहक जो आप पर विश्वास करता है, वह किसी वस्तु या सेवा से थोड़ा कम लाभ प्राप्त होने पर भी आपसे संबंध तोड़ना नहीं चाहता है।

किसी भी व्यापार या व्यक्तिगत जीवन में कुशल संवाद की भूमिका को हम बखूबी समझते हैं। किसी वस्तु या सेवा की उपयोगिता को ग्राहक के सामने रखने की अगर कल ना हो तो हम उसकी महत्ता ग्राहक को नहीं समझा पाते हैं। इससे संवादहीनता उत्पन्न होती है और अर्थ का अनर्थ हो जाता है। कुशल संवाद के ऊपर एक कहावत भी है जो बहुत ही प्रचलित है:

बाते हाथी पायिंय, बाते हाथी पाँव।

अर्थात एक व्यक्ति अपने बातों से अथवा कुशल संवाद से हाथी भी खरीद सकता है या संवादहीनता के कारण उसी हाथी के नीचे भी आ सकता है।

स्थानीय लोगों से संवाद के लिए स्थानीय भाषा का प्रयोग कुशल संवाद में अहम भूमिका निभाती है। हम वस्तुओं और सेवाओं की गुणवत्ता को उनके अंदाज में उन्हीं से साझा करते हैं। इससे हमारे  विचारों की अभिव्यक्ति उनके सामने यथास्वरूप होती है। संवाद की यह कला ग्राहक के मस्तिष्क में एक अमिट प्रभाव डालता है। ग्राहक वर्तमान में हमारे वस्तुओं अथवा सेवाओं का उपयोग तो करते ही हैं साथ ही साथ भविष्य में किसी भी वित्तीय समस्या में फस जाए तो सर्वप्रथम हमसे सलाह लेना पसंद करते हैं। इस परिस्थिति में जहां विश्वास का एक बंधन बन जाता है,  ग्राहक को हम उनके समस्याओं के समाधान के लिए या जरूरतों को पूरा करने के लिए अन्य वस्तु अथवा सेवाओं की अतिरिक्त बिक्री कर सकते हैं।

उपरोक्त चर्चा से यही निष्कर्ष निकलता है कि राजभाषा अथवा स्थानीय भाषा कुशल संवाद में विचारों की अस्पष्ट अभिव्यक्ति की कड़ी बनकर ग्राहक को अपनत्व का एहसास कराती है। ग्राहक भावनात्मक रूप से हमारी संस्थान के साथ जुड़ता है। उनके मन में संस्थान के प्रति विश्वसनीयता बढ़ती है और एक लंबा मजबूत संबंध ग्राहक हमारी संस्था के साथ स्थापित करता है। हम सभी जानते हैं कि किसी भी ग्राहक के साथ दीर्घकालीन संबंध व्यापार में वृद्धि के लिए अहम भूमिका निभाता है अर्थात व्यापार वृद्धि में राजभाषा अथवा स्थानीय भाषा का बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान है।

लेखक : प्रेम कुमार

Scroll to Top