बोकारो रैयतों व विस्थापितों की दास्तां
वर्तमान की घटना:
आज दिनांक 15 मार्च 2023, दिन बुधवार को प्रातः काल 4:00 से 5:00 के बीच हजारों की संख्या में RPF और पुलिस बल लेते हुए जिला प्रशासनिक अधिकारी, जिला प्रशासन के साथ बोकारो उत्तरी क्षेत्र, झारखण्ड के गांव धनघरी आती है।
धनघरी एक मुस्लिम बहुल गांव है, जहाँ 25 परिवारों के खतियानी घरों को दिनांक 24 सितंबर 2022 को बिना व्यक्तिगत नोटिस दिए (अखबार में नोटिस जारी किया गया था, जनवरी 2021 में) अहले सुबह 5 बजे, रेलवे प्रशासन द्वारा हजारों की संख्या में पुलिस बल तैनात कर बुलडोजर से जमींदोज कर दिया गया था जिसमें 25 परिवारों के घर सहित लाखों की सम्पति जमींदोज हो गयी, एक परिवार की बेटी का कुछ दिन बाद विवाह था जिसके शादी की सभी सामान भी जमींदोज हो गये। गौरतलब है कि इन खतियानी और रैयती घरों को अतिक्रमणकारी कह कर तोड़ा गया था जबकि यहां के रैयतों को ना नियोजन दिया गया, ना मुआवजा दिया गाया और ना ही पुनर्वास। गौर करने वाली बात यह भी है कि हमारे क्षेत्र बोकारो से भारतीय जनता पार्टी के विधायक श्री विरंची नारायण भी इस विषय पर रुचि नहीं लिये हैं और अब तक मौन हैं।

अपने घर के मलबे के उपर ही अपनी मांग (Right to Fair Compensation and Transparency in Land Acquisition, Rehabilitation and Resettlement Act, 2013 के तहत हमारी जमीन के अधिग्रहण करने के लिए अगर हमें नोटिस करें तथा अब तक हुए मानवाधिकार के हनन का मुआवजा दें, जब तक हमारी मांग पूरी नहीं होगी तब तक, हम मलबा हटाने नहीं देंगे।) को लेकर पिछले 173 दिन से अर्थात् डोजरिंग के एक दिन बाद 25 सितंबर 2022 से ही लोकतांत्रिक तरिके से धरना पर बैठे हुए ग्रामीणों से अभद्र भाषा का प्रयोग कर बहस करते हुए पुलिस बल अंदरूनी तरीके से प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए मारती है। ग्रामीण इसका विरोध करते हुए रेलवे और स्थानीय पुलिस के जवानों के लाठी-डंडे पकड़ने लगते हैं। ग्रामीणों को धुतकारते हुए जवान अंदरूनी तरीके से मारना चालू रखते हैं और प्रदर्शनकारियों को घसीट घसीट कर रोड पर फेंकने लगते हैं। इस निर्ममता के विरुद्ध ग्रामीण वहां उपस्थित जिला प्रशासन के उच्च अधिकारियों से बात करने की कोशिश करते हैं।

तथाकथित रूप से ग्रामीणों के इस रवैया को ग्रामीणों द्वारा उच्च अधिकारियों पर पथराव और हमले का लांछन लगाते हुए लाठीचार्ज शुरू कर देती है और हवाई फायरिंग भी करती है। जिला प्रशासन के इस निर्मम रवैया से ग्रामीणों के बीच दहशत फैल जाता है और खुद को बचाने के लिए कुछ ग्रामीण पुलिस से धक्का मुक्की करते हैं तो कुछ ग्रामीण अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगते हैं। जिला प्रशासन और रेलवे पुलिस ग्रामीणों को खदेड़ते हुए ग्रामीणों के ऊपर पथराव करती है, रबर की गोलियाँ दागती है, आँसू गैस के गोले छोड़ती है। छतों में, घरों में, गलियों में, आंगन में घुस घुस कर पुलिस महिलाओं, बच्चों, पुरुषों और बुजुर्गों की निर्मम तरीके से पीटाई करती है। पुलिसिया दमन के इस खेल में 25 से ज्यादा ग्रामीण पुरुष और 8 महिलाएं घायल होते हैं जिसमें से 5 लोगों को अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा है बाकि लोग उपचार करवा कर रिश्तेदार के घरों में बेड रेस्ट में हैं, एक वरिष्ठ नागरिक की स्थिति बहुत ही गंभीर है और बेहतर इलाज के लिए सदर अस्पताल, बोकारो द्वारा बडे अस्पताल में रेफर कर दिया गया है। मानवाधिकार के सभी सीमाओं को लांघते हुए जिला प्रशासन बहुत ही क्रूरता से धरना प्रदर्शन को भंग करने के लिए कार्य की है। धरना को भंग करने में सफल होने के साथ ही पुलिस बल अपने साथ पांच बुलडोजर लाई थी जो जमींदोज हुए घरों के मलबे को साक्ष्य मिटाने के लिए हटाने में लगा देती है। महिलाएं, बच्चे और पुरुष रोते बिलखते ही रहते हैं लेकिन किसी की भी गुहार सुनी नहीं जाती है।
इतिहास का विवरण:

तत्कालीन बिहार सरकार की अधिसूचना संख्या B/7/498/52/9060 दिनांक 09/08/1956 और B/7/498/52/9059 दिंनाक 10/08/1956 तहत देश के चतुर्थ इस्पात कारखाने के निर्माण के लिए तत्कालीन हजारीबाग और धनबाद जिले के 49 मौजा (गाँव) के जमीन का भू अर्जन अधिनियम, 1894 के तहत अधिग्रहण करने के लिए अधिसूचित किया गया था जिसका कुल रकबा लगभग 45,000 एकड़ से ज्यादा है। इसमें से 29 मौजा अर्थात 29 राजस्व गांव को पूर्ण अधिग़ृहित किया गया और बोकारो इस्पात संयंत्र, बोकारो के नाम से देश का चतुर्थ इस्पात कारखाना बनाया गया। बाकी बचे 20 मौजा को अधिसूचना के बाद ना ही भौतिक कब्जा लिया गया ना ही इस अधिसूचना को रद्द किया गया, बाकि बचे 20 किसी किसी गाँव में आंशिक रूप से पैमेंट दिया गया लेकिन कम्पनी द्वारा भौतिक कब्जा नहीं लिया गया। (गौरतलब है कि भू-अर्जन अधिनियम 1894 के तहत यदि रैयतों की भूमि पर 30 वर्षों के अंदर भौतिक कब्जा नहीं लिया गया तो उक्त जमीन स्वत: ही रैयत की हो जाएगी।)
मुआवजा नहीं मिलने एवं अधिसूचना नहीं रद्द होने के कारण 20 गांव के ग्रामीणों ने भू अर्जन अधिनियम 1894 के सेक्शन 18 में प्राप्त अधिकारों के तहत भू अर्जन न्यायालय, धनबाद में केस किया कि हमें मुआवजा नहीं मिला है और जिन्हें मिला है उन्हें बहुत कम मिला है। इसके बाद 1 अप्रैल 1968 को बोकारो इस्पात संयंत्र द्वारा 7,000 एकड़ जमीन को सरप्लस अर्थात अतिरिक्त घोषित कर देती है। इसका मतलब है कि इस जमीन जरूरत अब इस कंपनी को नहीं है। फिर 25 मार्च 1969 को इस्पात संयंत्र द्वारा 7,300 एकड़ जमीन को सरप्लस घोषित कर दिया गया। इसका मतलब है कि इस जमीन जरूरत अब इस कंपनी को नहीं है। उक्त भूमि पर ग्रामीण रैयत अपनी पुश्तैनी घरों में बसे रहे और खेती बारी करके अपना जीवन यापन करते रहे।
इसके बाद वर्ष 1973 में बोकारो इस्पात संयंत्र अपने फिजिकल पोजीशन को दिखाते हुए लगभग केवल 16,500 एकड़ (29 मौजा की) जमीन पर अपनी चारदीवारी का निर्माण कर प्लांट प्रिमाइसेस का कंपाउंडिंग कर लिया। गौरतलब है कि वर्तमान में प्लांट के चारदीवारी के अंदर इतनी अतिरिक्त भूमि पड़ी है कि इस प्लांट को वर्तमान क्षमता 4.5 मिलियन टन से 10 मिलियन टन क्षमता तक आसानी से विस्तारीकरण किया जा सकता है। इसके बाद वर्तमान में विवादित भूमि (धनघरी टोला, मौजा बैदमारा) से सटा हुआ मौजा रानीपोखर को दिनांक 11 अगस्त 1978 को 1250.48 एकड़ जमीन वापस कर दिया गया। अधिघोषणा सं० 93 दिनांक 16/09/1978, जिला धनबाद (वर्तमान बोकारो)। 31 अगस्त 1987 को रैयतों द्वारा न्यायालय में किए गए केस का जजमेंट रैयतों के पक्ष में आ गया कि रैयतों द्वारा माँगे गये वृद्धि राशि का भुगतान बोकारो इस्पात संयंत्र (SAIL, बोकारो) को करना है।
बोकारो इस्पात संयंत्र के द्वारा बोकारो इस्पात संयंत्र बनाम राज्य सरकार, बिहार (वर्तमान झारखण्ड) इस वृद्धि राशि को कम करवाने के लिए माननीय उच्च न्यायालय, रांची में चुनौती दिया गया। इस केस में केस संख्या FA 45-46/1991 में हम रैयतों को ना पार्टी बनाया गया ना ही इंटरवेनर। इस केस FA 45-46/1991 का जजमेंट उच्च न्यायालय रांची के चीफ जस्टिस एमवाई इकबाल साहब ने दिनांक 6 दिसंबर 2007 को रैयतों के अधिकार को मद्देनजर रखते हुए किया। जजमेंट में कहा गया कि 50 वर्षों में ह्यूमन राइट्स का हनन हुआ है इसलिए रैयतों को कंपनसेशन मिलना चाहिए with interest and other benefit.
बोकारो इस्पात संयंत्र ने माननीय उच्च न्यायालय के इस जजमेंट की अवहेलना की और इस केस FA 45-46/1991 के जजमेंट के खिलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल लीव पिटिशन (SLP) 4682-4683/2008 दायर किया। स्पेशल लीव पिटिशन (SLP) 4682-4683/2008 आगे चलकर सिविल अपील 3986-3987/2010 में परिवर्तित हो गया। यह केस लंबे समय तक चला और 18 सितंबर 2018 को अधिवक्ताओं द्वारा माननीय सर्वोच्च न्यायालय को बताया गया कि “Amicable settlement has been reached between the appellant and the respondent And file is pending for the approval of the concern minister and cabinet, accordingly appeals have been infructuous. In any case necessity arises to revive the appeals, it would be open for the state of Jharkhand to revive the appeals.” (अपीलकर्ता और प्रतिवादी के बीच सौहार्दपूर्ण समझौता हो गया है और फाइल संबंधित मंत्री और कैबिनेट के अनुमोदन के लिए लंबित है, तदनुसार अपील निष्फल रही है। किसी भी मामले में अपीलों को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता उत्पन्न होती है तो इन अपीलों को पुनर्जीवित करने के लिए झारखंड राज्य सरकार पहल कर सकती है।)
गौरतलब है कि इतना बड़ा मुद्दा जिसमें 20 गांव में बसने वाले 1,50,000 की आबादी के अस्तित्व का सवाल है, ऐसे गंभीर विषय में झारखंड के तत्कालीन भारतीय जनता पार्टी की सरकार न्यायालय में चल रहे केस को डिस्पोज करने के लिए बोकारो इस्पात संयंत्र से न्यायालय के बाहर वर्ष 2018 में समझौता कर लेती है, रैयतों की सहमति के बिना।

बोकारो इस्पात संयंत्र तत्कालीन भारतीय जनता पार्टी की झारखंड सरकार से मिलीभगत कर वर्ष 2018 में ही बैक डेट से अर्थात 2 सितंबर 2014 से ही 20 गांव के रैयतों की जमीन का बंदोबस्ती कराते हुए इन गाँवों के नाम सहित इसमें बसने वाले 1,50,000 की आबादी को सरकारी रिकॉर्ड में दुनिया के नक्शे से गायब कर उक्त जमीन को ग्रीन लैंड बताया जाता है और खतियानी, पुश्तैनी, रैयती घरों को अतिक्रमणकारी घोषित कर दिया गया है।
हम भी थोड़ा बैक डेट में जाते हैं, वर्ष 2002 में 50 साल बाद, 20 मौजा में से 12 मौजा (भतुआ, जरीडीह, धरमपुरा, नरकेरा, करहरिया, रानीपोखर, उकरीद, धनडबरा, पिपराटाँड़ (चास थाना नं० 36), मानगो, बोदरोटाँड़, कनारी, को पंचायती राज झारखंड, रांची पत्र संख्या 343/ग्राम पंचायत, दिनांक 17 दिन 2002 को गजट नोटिफिकेशन कर झारखंड पंचायत राज अधिनियम 2001 की धारा 13 के तहत 12 पंचायतों में वर्गीकृत कर पंचायती राज में शामिल कर लिया जाता है तत्कालीन रूप से। लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में ये भी 13 गांव के लोगों के खतियान नक्शे से गायब है।
बाकी बचा हुआ 8 मौजा ( शिबुटाँड, कुण्डौरी, पंचौरा, बैदमारा, महेशपुर, महुआर, बनशिमली और कनफट्टा) जस के तस रह गए इन गांव को पंचायत का भी दर्जा नहीं दिया गया हम 8 मौजा के ग्रामीणों को ना पंचायत में रखा गया है ना ही नगर निगम में, हमें तीसरा वोट देने का अधिकार ही नहीं है। हमारा जाति, आवासीय, आय प्रमाण पत्र भी नहीं बनाया जाता है। यदि नक्शे से गायब किए गये इस गलत निर्णय की तिथि 02/09/2014 से 12 साल के अंदर दिनांक 01/09/2026 से पहले सुधारा नहीं जाता है तो 20 गाँव के लोगों का अस्तित्व ही नष्ट हो जाएगा। इस कार्य के लिए भी हम लबें समय से संघर्षरत हैं।
सरकारी रिकॉर्ड से हटने के बाद इस 20 गांव की जमीन पर भु माफियाओं की नजर पड़ गई है और यहां की जमीन को टुकड़ों में विशेष भू अर्जन विभाग, डीपीएलआर विभाग और सेल प्रबंधन के अधिकारी मिलीभगत करके वहाँ सदियों से बसे रैयतों की अनुमति लिए बिना भू माफियाओं और छोटे-छोटे कंपनियों को बेचने का शिलशिला शुरु किया जा रहा है जबकि वर्ष 1956 के अधिसूचना में यह वर्णन है कि उक्त जमीन को केवल चतुर्थ इस्पात कारखाने के निर्माण के लिए है उपयोग में लिया जाएगा, इसके अतिरिक्त यदि उक्त जमीन को किसी अन्य कार्य के लिए प्रयोग में लाया जाएगा तो रैयतों की अनुमति ली जायेगी।
वर्तमान स्थिति से इतिहास का संबंध:

वर्तमान समय में जिन 8 मौजा में पंचायत नहीं है और जो तथाकथित रूप से अतिक्रमणकारी घोषित हैं उन्हीं मौजा में से मौजा बैदमारा, टोला धनघरी में ये घटना घटित हुई है।
अखबार के माध्यम से धनघरी के लोगों को जनवरी 2021 में नोटिस दिया जाता है कि उक्त जमीन रेलवे की है इसे शीघ्र अति शीघ्र खाली कर दो।
ग्रामीण इस फिराक में रहते हैं कि रेलवे कभी उनसे जमीन का अधिग्रहण किया ही नहीं है तो फिर यह जमीन रेलवे की कैसे हो सकती है और वे इस अखबारी नोटिस को गंभीरता से नहीं लेते हैं।
इसके बाद जिला प्रशासन ग्रामीणों के ऊपर मानसिक दबाव बनाते हुए उक्त जमीन को खाली करने के लिए समय-समय पर प्रताड़ित करते रही। ग्रामीण अपनी जमीन के दस्तावेजों के साथ सरकारी दफ्तरों और नेताओं के चक्कर यहां से वहां लगभग डेढ़ साल तक काटते रहें लेकिन सभी जगह केवल आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला। उसके बाद असिस्टेंट डिविजनल इंजीनियर दक्षिण पूर्व रेलवे बोकारो स्टील सिटी के आदेश पत्रांक संख्या W/8/26 दिनांक 16 सितंबर 2022 को धनघरी के ग्रामीणों को अतिक्रमणकारी बताते हुए उक्त जमीन को खाली करने का नोटिस देती है।
कोई विकल्प ना निकलने पर थक हार कर ग्रामीण न्यायालय में इस नोटिस पर स्टे आर्डर लगाने के लिए 19 सितंबर 2022 को Writ Petition 4791/2022 दायर कराते हैं जो 21 सितंबर 2022 को एडमिट होता है। ग्रामीणों को सुनवाई की तिथि माननीय न्यायालय द्वारा 27 सितंबर 2022 को दी जाती है।
असिस्टेंट डिविजनल इंजीनियर दक्षिण पूर्व रेलवे बोकारो स्टील सिटी के आदेश पत्रांक संख्या W/8/26 दिनांक 16 सितंबर 2022 के आलोक में जिला प्रशासन की सहमति से अनुमंडल पदाधिकारी, चास के द्वारा व्यक्तिगत रुचि लेते हुए ज्ञापांक संख्या 1264 गोपनीय दिनांक 20/09/2022 को अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाने के लिए धनघरी में दिनांक 24/09/2022 को दंडाधिकारी एवं पुलिस बल तैनात करने का आदेश दिया जाता है।
Writ Petition 4791/2022 में माननीय न्यायालय द्वारा सुनवाई की तिथि 27 सितंबर 2022 को तय की गई है इसकी जानकारी न्यायालय द्वारा बोकारो जिला उपायुक्त को भेजा जाता है। न्यायालय में लंबित मामले को ताक में रखते हुए जिला प्रशासन 5000 पुलिस फोर्स के साथ 24 सितंबर 2022 के अहले सुबह 5 बजे धनघरी पहुंचती है, आक्रामक रवैया से ग्रामीणों में दहशत फैलाती है, लाठी चार्ज करती है और धनगरी को छावनी में तब्दील कर सभी ग्रामीणों को बंधक बना लिया जाता है, धनघरी आने-जाने के सभी रास्ते बंद कर दिए जाते हैं और अंधाधुन बुलडोजर चलाने लगती है। इस निर्मम अत्याचार में घरों से घसीट घसीट कर लोगों को निकाला जाता है। बुजुर्ग महिलाओं को रेलवे ट्रैक में फेंक दिया जाता है। घर में बांधे गए मवेशियाँ डोजरिंग के कारण मलबे में दब जाते हैं। एक परिवार की बेटी का कुछ दिन बाद विवाह था जिसके शादी की सभी सामान भी जमींदोज हो गये। गौरतलब है कि इन खतियानी और रैयती घरों को अतिक्रमणकारी कह कर तोड़ा गया था जबकि यहां के रैयतों को ना नियोजन दिया गया, ना मुआवजा दिया गाया और ना ही पुनर्वास। गौर करने वाली बात यह भी है कि हमारे क्षेत्र बोकारो से भारतीय जनता पार्टी के विधायक श्री विरंची नारायण भी इस विषय पर रुचि नहीं लिये हैं और अब तक मौन हैं।
इसके बाद ग्रामीण अपने घर के मलबे के उपर ही एक मोर्चा “बोकारो ग्रामीण रैयत अधिकार मोर्चा (बोकारो ग्राम), बैदमारा, बोकारो का निर्माण कर दिनांक 25 सितंबर 2022 से अपनी मांग (Right to Fair Compensation and Transparency in Land Acquisition, Rehabilitation and Resettlement Act, 2013 के तहत हमारी जमीन के अधिग्रहण करने के लिए अगर हमें नोटिस करें तथा अब तक हुए मानवाधिकार के हनन का मुआवजा दें, जब तक हमारी मांग पूरी नहीं होगी तब तक, हम मलबा हटाने नहीं देंगे।) को लेकर पत्र के माध्यम से जिला प्रशासन को अवगत कराते हुए धरने पर बैठ जाते हैं।

27 सितंबर 2022 को Writ Petition 4791/2022 की सुनवाई के दिन दोनों पक्षों के वकील न्यायालय में मौन रहते हैं और कोई भी साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया जाता है, हमारा वकिल मुकरते हुए केवल इतना ही बात न्यायालय को बताता है कि जिस कार्य पर स्टे आर्डर लगाने के लिए यह रिट पिटिशन किया गया है उन घरों को डोजरिंग कर दिया गया है। यह मामला कोर्ट में infructuous वह जाता है और माननीय न्यायालय आदेश देती है कि
“Learned counsel for the petitioner, on instruction, submits that the construction made over the land in question has already been demolished by the State authorities at the request of the Railway authorities and hence the present writ petition has now become infructuous. Considering the said submission of learned counsel for the petitioner, the present writ petition is dismissed as infructuous. It is however observed that if the claim of the petitioner is that he had lawful possession over the land in question and he has been unlawfully evicted therefrom by the State as well as the Railway authroites, he is at liberty to take appropriate recourse on said aspect as permissible under law.”
“याचिकाकर्ता के वकील ने, निर्देश पर, प्रस्तुत किया है कि रेलवे अधिकारियों के अनुरोध पर राज्य के अधिकारियों द्वारा विवादित भूमि पर किए गए निर्माण को पहले ही ध्वस्त कर दिया गया है और इसलिए वर्तमान रिट याचिका अब निरर्थक हो गई है। याचिकाकर्ता के विद्वान अधिवक्ता के उक्त कथन को ध्यान में रखते हुए, वर्तमान रिट याचिका को निष्फल मानकर खारिज किया जाता है। हालांकि यह देखा गया है कि यदि याचिकाकर्ता का दावा है कि प्रश्नगत भूमि पर उसका वैध कब्जा था और उसे राज्य के साथ-साथ रेलवे के अधिकारियों द्वारा अवैध रूप से बेदखल कर दिया गया है, तो वह उक्त पहलू पर उचित सहारा लेने के लिए स्वतंत्र है। कानून के तहत अनुमति प्रदान है।”
घटनास्थल पर धरना प्रदर्शन जारी रखते हुए ग्रामीण सूचना अधिकार अधिनियम, 2005 में प्रदत अधिकारों का प्रयोग करते हुए दिनांक 7/11/2022 को असिस्टेंट डिविजनल इंजीनियर, दक्षिण पूर्व रेलवे, बोकारो स्टील सिटी को सूचना उपलब्ध कराने की मांग करते हैं कि ” यदि भूतकाल में कभी भी रेलवे हमारी उक्त भूमि को अधिसूचित या अधिग्रहित की है तो उक्त दस्तावेज हमें प्रस्तुत करने की कृपा करें।” रेलवे आज दिनांक 15 मार्च 2023 तक हमें कोई दस्तावेज उपलब्ध नहीं करा पाई है।
इसके बाद दिनांक 16/11/2022 को रेलवे चैयरमैन, भारत सरकार और रैलवे डीआरएम, अद्रा डिविजन को ग्रामीणों द्वारा पत्र लिखा गया कि ” Writ Petition 4791/2022 में रैलवे उच्च न्यायालय में उक्त भूमि के मालिकाना हक का कोई भी साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर पाई और जबरन हमारे घरों को तोड़ दिया गया तो अब रेलवे नए सिरे से Right to Fair Compensation and Transparency in Land Acquisition, Rehabilitation and Resettlement Act, 2013 के तहत हमारी जमीन के अधिग्रहण करने के लिए हमें नोटिस करें, हम जमीन देने के लिए तैयार हैं। हम विकासशील देश के विकास के बाधक नहीं है लेकिन देश के विकास की कहानी हमारे विनाश के ऊपर नहीं लिखी जानी चाहिए।
धरना लंबे समय तक चलता ही रहा 172 दिनों तक ग्रामीण धरने पर बैठे ही रहे लेकिन प्रशासनिक महकमें, सरकारी दफ्तरों और हमारे जनप्रतिनिधि विधायक श्री विरंची नारायण कोई शुद लेने तक नहीं आये और आज दिनांक 15 मार्च 2022 तक किसी भी सरकारी अधिकारी से हमें कोई जवाब भी प्राप्त नहीं हुआ है।
धरना प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने और मलबे के रूप में उपस्थित साक्षी को मिटाने के लिए 172 दिन बाद फिर रेलवे द्वारा बल का प्रयोग किया गया और हजारों की संख्या में पुलिस फोर्स के साथ रेलवे द्वारा धनघरी गांव में पुलिसिया दमन चलाया गया।
इसके आगे का विवरण आरंभ में ही वर्णन किया गया है।
केवल इतना ही नहीं यहां के भू-माफिया अन्य छोटे-छोटे प्रोजेक्ट के लिए जमीन का बंदरबांट करने हेतु गिद्ध की नजर गड़ाए हुए बैठे हैं।